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जल संकट से जूझ रहा पाकिस्तान अब जल मंथन में जुटा है और शोधकर्ताओं की सलाह से संकट से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है।

  
  
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  पहलगाम में आतंकवादी हमले के बाद भारत द्वारा सिंधु जल संधि को निलंबित करने के परिणामस्वरूप गंभीर जल संकट से जूझ रहा पाकिस्तान अब मौजूदा स्थिति और चुनौतियों से निपटने के लिए जल मंथन में लगा हुआ है। भारत के साथ हालिया संघर्ष में बुरी तरह प्रभावित होने के बाद पड़ोसी देश अपने शोधकर्ताओं की मदद से जल संकट पर काबू पाने की कोशिश कर रहा है। 'डॉन' की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस संबंध में कराची स्थित पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स (पीआईआईए) ने 'भारत-पाकिस्तान संघर्ष' पर एक सेमिनार का आयोजन किया। पीआईआईए की अध्यक्ष डॉ. मासूमा हसन ने कहा कि पहलगाम में आतंकवादी हमले के बाद भारत ने 1960 की सिंधु जल संधि और पाकिस्तान ने 1972 के शिमला समझौते को निलंबित कर दिया था। हाल के संघर्ष के बारे में समाज के सभी वर्गों, विशेषकर युवाओं की आवाज सुनने की आवश्यकता है। इसलिए हमने अपने शोध सहायकों को चर्चा के लिए बुलाने का निर्णय लिया। इसमें मुहम्मद उस्मान, सैयदा मलीहा सहर, सफा रहमत, सैयद शहरयार शाह, आसिफ अली और साद असद ब्रोही जैसे प्रसिद्ध अनुसंधान सहायकों ने भाग लिया। मुहम्मद उस्मान ने 'जल संसाधन एवं संसाधन' विषय पर शोध पत्र प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि यदि भारत पाकिस्तान की ओर पानी का प्रवाह रोक देता है तो इससे उसके ऊपरी इलाकों में बाढ़ आ सकती है। उन्होंने कहा, "लेकिन यदि वे शुष्क मौसम के दौरान हमारा पानी रोक देते हैं, तो यह हमारे लिए चिंता का विषय हो सकता है, क्योंकि इससे पानी का प्रवाह कम हो जाता है और भंडारण सबसे महत्वपूर्ण होता है।" इससे हमारे किसान प्रभावित हो सकते हैं, जिससे उत्पादन कम हो सकता है।
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